

भारत के संविधान ( अनुच्छेद 148 ) में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के स्वतंत्र पद की व्यवस्था की गई है , जिसे संक्षेप में ‘ महालेखा परीक्षक ‘ कहा गया है । यह भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग का मुखिया होता है । यह लोक वित्त का संरक्षक होने के साथ – साथ देश की संपूर्ण वित्तीय व्यवस्था का नियंत्रक होता है । इसका नियंत्रण राज्य एवं केंद्र दोनों स्तरों पर होता है । इसका कर्तव्य होता है कि भारत के संविधान एवं संसद की विधि के तहत वित्तीय प्रशासन को संभाले । डॉ . बी.आर. अंबेडकर ने कहा था कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक भारतीय संविधान के तहत सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होगा । यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारत सरकार के रक्षकों में से एक होगा । इन रक्षकों में उच्चतम न्यायालय , निर्वाचन आयोग एवं संघ लोक सेवा आयोग शामिल हैं।
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति– नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती शब्दों में , संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत के साथ उसके नियुक्ति एवं कार्यकाल है । कार्यभार संभालने से पहले यह राष्ट्रपति के सम्मुख निम्नलिखित राज्य या प्रतिज्ञान लेता है :
1. भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेगा ।
2. भारत की एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा ।
3. सम्यक प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता , ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात , अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूंगा ।
4. संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूगा ।
इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष ( जो भी पहले ही ) की आयु तक होता है । इससे पहले वह राष्ट्रपति के नाम किसी भी समय अपना भागपत्र भेज सकता है । राष्ट्रपति द्वारा इसे उसी तरह हटाया जा सकता है , जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है । दूसरे व्यवहार या अयोग्यता पर प्रस्ताव पास कर उसे हटाया जा सकता है ।
स्वतंत्रता-
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संविधान में निम्नलिखित व्यवस्था की गई है ।
1. इसे कार्यकाल की सुरक्षा मुहैया कराई गई है । इसे केवल राष्ट्रपति द्वारा संविधान में उल्लिखित कार्यवाही के जरिए हटाया जा सकता है । इस तरह यह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर नहीं रहता यद्यपि इसकी नियुक्त राष्ट्रपति द्वारा ही होती है ।
2. यह अपना पद छोड़ने के बाद किसी अन्य पद , चाहे वह भारत सरकार का हो या राज्य सरकार का , ग्रहण नहीं कर सकता ।
3. इसका वेतन एवं अन्य सेवा शर्ते संसद द्वारा निर्धारित होती हैं । वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है ।
4. इसके वेतन में और अनुपस्थिति , छुट्टी , पेंशन या निवृत्ति की आयु के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।
5. भारतीय लेखा परीक्षक , लेखा विभाग के कार्यालय में काम करने वाले लोगों की सेवा शर्ते और नियंत्रक – महालेखा परीक्षक की प्रशासनिक शक्तियां ऐसी होंगी , जो नियंत्रक – महालेखा परीक्षक से परामर्श करने के पश्चात राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं ।
6. नियंत्रक – महालेखा परीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय , जिनके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन भत्ते और पेंशन हैं , भारत की संचित निधि पर भारित होंगे । अत : इन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता । कोई भी मंत्री संसद के दोनों सदनों में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है और कोई मंत्री उसके द्वारा किए गए किसी कार्य की जिम्मेदारी नहीं ले सकता ।
कर्तव्य , शक्तियां एवं सेवा शर्ते–
संविधान ( अनुच्छेद 151 ) संसद को यह अधिकार देता है कि वह केन्द्र , राज्य या किसी अन्य प्राधिकरण या संस्था के महालेखा परीक्षक से जुड़े लेखा मामलों को व्यास्थापित करे । इसी से जुड़े संसद ने महालेखा परीक्षक ( कर्तव्य , शक्तियां एवं सेवा शर्ते ) अधिनियम 1971 को प्रभावी बनाया ।
इस अधिनियम को 1976 में केंद्र सरकार के लेखा परीक्षा से लेखा को अलग करने हेतु संशोधित किया गया । संसद एवं संविधान द्वारा स्थापित नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य एवं कर्तव्य निम्नलिखित हैं :
1. वह भारत की संचित निधि , प्रत्येक राज्य की संचित निधि और प्रत्येक संघ शासित प्रदेश प्रदेश , जहां विधानसभा हो , से सभी व्यय संबंधी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है ।
2. वह भारत की संचित निधि और भारत के लोक लेखा सहित प्रत्येक राज्य की आकास्मिकता निधि और प्रत्येक राज्य के लोक लेखा से सभी व्यय की लेखा परीक्षा करता है ।
3. वह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी विभाग द्वारा सभी ट्रेडिंग , विनिर्माण लाभ और हानि लेखाओं , तुलन पत्रों और अन्य अनुषगी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है ।
4. वह केन्द्र और प्रत्येक राज्य की प्राप्तियों और व्यय की लेखा परीक्षा स्वयं को यह संतुष्ट करने के लिए करता है कि राजस्व के कर निर्धारण , सग्रहण और उचित आवंटन पर प्रभावी निगरानी सुनिश्चित के नियम और प्रक्रियाएं निर्मित की गई हैं
5. वह निम्नांकित प्राप्तियों और व्ययों का भी लेखा परीक्षण करता है । ( अ ) वे सभी निकाय एवं प्राधिकरण , जिन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से अनुदान मिलता है । ( ब ) सरकारी कंपनियां , एवं ( स ) जब संबद्ध नियमों द्वारा आवश्यक हो अन्य निगमों एवं निकायों का लेखा परीक्षण ।
6. वह ऋण , निक्षेप निधि , जमा , अग्रिम , बचत खाता और धन प्रेषण व्यवसाय से संबंधित केन्द्रीय और राज्य सरकारों के सभी लेन – देनों की लेखा परीक्षा करता है । वह राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ या राष्ट्रपति द्वारा मांगे जाने पर प्राप्तियों , स्टॉक लेखाओं और अन्यों की भी लेखा परीक्षा करता है ।
7. वह राष्ट्रपति या राज्यपाल के निवेदन पर किसी अन्य प्राधिकरण के लेखाओं की भी लेखा परीक्षा करता है । उदाहरण के लिए स्थानीय निकायों की लेखा परीक्षा ।
8. वह राष्ट्रपति को इस संबंध में सलाह देता है कि केन्द्र और राज्यों के लेखा किस प्रारूप में रखे जाने चाहिए ।
9. वह केंद्र सरकार के लेखों से संबंधित रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है , जो उसे संसद के पटल पर रखते हैं ( अनुच्छेद 15101
10. वह राज्य सरकार के लेखों से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को देता है , जो उसे विधानमंडल के पटल पर रखते हैं ( अनुच्छेद 151 ) ।
11. वह किसी कर या शुल्क की शुद्ध आगमों का निर्धारण और प्रमाणन करता है ( अनुच्छेद 279 ) । उसका प्रमाण – पत्र अंतिम होता है । शुद्ध आगमों का अर्थ है – कर या शुल्क की प्राप्तियां , जिसमें संग्रहण की लागत सम्मिलित न हो ।
12. वह संसद की लोक लेखा समिति के गाइड , मित्र और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है ।
13. वह राज्य सरकारों के लेखाओं का संकलन और अनुरक्षण करता है । 1976 में इसे केन्द्रीय सरकार के लेखाओं के संकलन और अनुरक्षण कार्य से मुक्त कर दिया गया क्योंकि लेखाओं को लेखा परीक्षण से अलग कर लेखाओं का विभागीकरण कर दिया गया ।
सीएजी ( कैग ) राष्ट्रपति को तीन लेखा परीक्षा प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है – विनियोग लेखाओं पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट , वित्त लेखाओं पर लोग परीक्षा रिपोर्ट और सरकारी उपक्रमों पर लेखा परीक्षा रिपोर्ट । राष्ट्रपति इन रिपोटों को संसद के दोनों सदनों के सभापटल पर रखता है । इसके उपरांत लोक लेखा समिति इनकी जांच करती है और इसके निष्कर्षों से संसद को अवगत कराती है विनियोग लेखा वास्तविक खर्च की संसद की विनियोग अधिनियम के माध्यम से दी गई स्वीकृति के बीच तुलनात्मक स्थिति को सामने रखता है , जबकि वित्त लेखा वार्षिक प्राप्तियों तथा केन्द्र सरकार की अदायगियों को प्रदर्शित करता है ।
भूमिका–
वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में भारत के संविधान एवं संसदीय विधि के अनुरक्षण के प्रति महालेखा परीक्षक उत्तरदायी होता है । कार्यकारी ( अर्थात् मंत्रिपरिषद ) की संसद के प्रति वित्तीय प्रशासन का उत्तरदायित्व कैग की लेखा परीक्षा रिपोर्टों के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है ।
महालेखा परीक्षक संसद का ऐजेंट होता है और उसी के माध्यम से खर्चों का लेखा परीक्षण करता है । इस तरह वह केवल संसद के प्रति जिम्मेदार होता है । महालेखा नियंत्रक एवं परीक्षक ( CAG ) को खर्चों की लेखा परीक्षा में प्राप्तियों , भंडारों तथा स्टॉक के लेखा परीक्षण की तुलना में कहीं अधिक स्वतंत्रता होती है , जबकि खर्च के संबंध में वह लेखा परीक्षा के विषय क्षेत्र को निश्चित करता है तथा स्वयं अपनी लेखा परीक्षाओं को पूरा करने के लिए नियमावलियों के संबंध में परीक्षा सहिताओं तथा नियमावलियों की रचना करता है । उसे अन्य कार्यकारी सरकार से स्वीकृति लेनी पड़ती है ।
कैग को यह निर्धारण होता है कि विधिक रूप में जिस प्रयोजन हेतु धन संवितरित किया गया था , वह उसी प्रयोजन या सेवा हेतु प्रयुक्त या प्रभारित किया गया है और क्या व्यय इस हेतु प्राधिकार के अनुरूप है । इस महालेखा परीक्षक की भूमिका का निर्वाह कर रहा है । दूसरे शब्दों में , कण का भारत की संचित निधि से धन की निकासी पर कोई नियंत्रण नहीं है और अनेक विभाग कैग के प्राधिकार के बिना चौक जारी कर पन की निकासी कर सकते हैं . कैग की भूमिका व्यय होने के बाद कंदल लेखा परीक्षा अवस्था में है ।
इस संबध में भारत के कैग की भूमिका ब्रिटेन के कैग , जिसके पास नियंत्रक सहित महालेखापरीक्षक को शक्तियों से बिल्कुल भिन्न हैं । दूसरे शब्दों में , कार्यकारिणी लोक राजकोष से केवल कैग की स्वीकृति से धन निकाल सकती है । विधिक और विनियामक लेखा परीक्षा के अतिरिक्त कैग औचित्य लेखा परीक्षा भी करता है अर्थात् वह सरकारी व्यय की तर्कसंगतता , निष्ठा और मितव्ययता की भी जांच करता है और ऐसे व्यय की व्यर्थता और दिखावे पर टिप्पणी भी करता है ।
तथापि विधि और विनियामक लेखा परीक्षा जोकि कैग पर बाध्यकारी है , औचित्य लेखा परीक्षा के विवेकानुसार है । गुप्त सेवा व्यय कैग की लेखा परीक्षा भूमिका पर सीमाएं निर्धारित करता है । इस संबंध में कैग कार्यकारी ऐजेन्सियों द्वारा किए गए व्यय के ब्यौरे नहीं मांग सकता , परन्तु सक्षम प्रशासनिक प्राधिकारी से प्रमाण – पत्र को स्वीकार करना होगा कि व्यय इस प्राधिकार के अंतर्गत किया गया है । भारत के संविधान में कैग की परिकल्पना नियंत्रक सहित महालेखा परीक्षक के रूप में की गई है ।
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